!! व्यथा !!

!! व्यथा !!
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कटे झाड़
फूटे पहाड़
उजड़ती वादियाँ
सिमटती नदियाँ
टूटी बावड़ियाँ
नंगी पहाडियाँ
पोखर सरकते
नाले सिसकते
कुए पुरते
तालाब मरते देखकर…
फट जाती है
बादलों की छाती,
आसमान से आफत
यूँ ही नहीं आती !!!
(साभार- श्री मोहन नागर)

डॉ. कुमार विश्वास की एक पोस्ट पर एक सज्जन श्री मोहन नागर जी ने अपने कमेंट में इन खूबसूरत पंक्तियों के माध्यम से प्रकृति की व्यथा व्यक्त की है. कितना सही कहा है उन्होंने. इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि दैवीय आपदाओं पर किसी का वश नहीं चलता. लेकिन क्या यह भी सच नहीं है कि कहीं न कहीं इन प्राकृतिक आपदाओं के लिए हम भी बराबर के जिम्मेदार हैं. लालच के वशीभूत होकर हमने न जाने कितनी बार जाने अनजाने प्रकृति के साथ खिलवाड़ किया है. प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन का ही परिणाम है कि नदियाँ सिकुड़ रही हैं . तालाबों, कुओं का अस्तित्व ख़त्म होने के कगार पर है. वृक्षों के अंधाधुंध कटान से वन क्षेत्र निरंतर कम हो रहा है. लगातार बढ़ते शहरीकरण से प्राकृतिक असंतुलन बढ़ता जा रहा है.

jnv kottrakkara

आइये, हम नवोदय परिवार के सभी सदस्य अपने देश, समाज, परिवेश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए प्राकृतिक संसाधनों को कुछ हद तक सहेजने का प्रयास करें…… आइये प्रण करें कि देश भर में फैले नवोदय परिवार के सदस्य इस मानसून में अपने आँगन, खेत खलिहान, पास के पार्क आदि जगहों पर यथाशक्ति कुछ वृक्ष लगायें… यकीन मानिये, इससे न सिर्फ हमें आत्मिक संतोष मिलेगा बल्कि देश और समाज के प्रति कुछ हद तक अपनी जिम्मेदारी निभाने का सुखद एहसास भी होगा…

नवोदय परिवार उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और देश के अन्य राज्यों में आई इस भयानक आपदा से पीड़ित लाखों देशवासियों के साथ है….. ईश्वर दुःख की इस घडी में उनको संबल प्रदान करे.

Regards,
Sudhir Teotia

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One thought on “!! व्यथा !!

  1. मोहन नागर

    धन्यवाद

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